🐢 कछुआ और खरगोश - धैर्य की नैतिक कहानी एक बार की बात है, एक हरे-भरे जंगल में एक फुर्तीला खरगोश और एक शांत-स्वभाव वाला कछुआ रहते थे। खरगोश अपनी तेज़ रफ्तार पर बहुत घमंड करता था और अक्सर दूसरों को अपनी गति दिखाने के लिए चिढ़ाता था। जंगल के जानवर उसके घमंड से परेशान थे। एक दिन, खरगोश ने कछुए का मज़ाक उड़ाते हुए कहा, "अरे कछुए, तुम्हारी तो रफ्तार इतनी धीमी है कि मैं सौ बार चक्कर लगाकर भी लौट आऊं और तुम अभी भी वहीं खड़े रहो।" कछुआ मुस्कुराया और बोला, "तेज़ होना अच्छी बात है, लेकिन निरंतरता और धैर्य ज़्यादा मायने रखते हैं। चलो, अगर तुम्हें यकीन नहीं तो हम दौड़ लगाते हैं।" खरगोश ने हँसते हुए तुरंत चुनौती स्वीकार कर ली। अगले दिन सुबह, जंगल के सभी जानवर मैदान में इकट्ठा हुए। दौड़ का रास्ता लंबा था और बीच-बीच में चढ़ाई, मोड़ और छोटे-छोटे गड्ढे भी थे। जैसे ही दौड़ शुरू हुई, खरगोश बिजली की तरह आगे बढ़ गया। कुछ ही पलों में वह कछुए से बहुत आगे निकल गया। रास्ते में एक ठंडी छाया वाला पेड़ आया। खरगोश ने सोचा, "कछुआ तो बहुत पीछे है, थोड़ी देर आराम कर ले...
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